World Book Fair 2024 : कविता-संग्रह ‘निमित्त नहीं’ पर एक द्विपक्षीय चर्चागोष्ठी

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में ‘World Book Fair 2024’ में आयोजित वाणी प्रकाशन ग्रुप के ‘वाणी साहित्य-उत्सव’ में, कविता-संग्रह ‘निमित्त नहीं’ पर एक द्विपक्षीय चर्चागोष्ठी का आयोजन हुआ। इस अवसर पर पत्रकार प्रियदर्शन के साथ वरिष्ठ कवयित्री सुमन केशरी ने एक रोचक संवाद किया।

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World Book Fair 2024.

चर्चा की शुरुआत में प्रियदर्शन ने बताया कि सुमन केशरी के लेखन में महाभारत के विषय पर गहन विचार हैं। उन्होंने महाभारत की स्त्रियों को अपनी कविताओं के माध्यम से बहुत बेहतर रूप से व्यक्त किया है। यह कविता-संग्रह महाभारत के स्त्री-पात्रों को समझने में पाठकों की सहायता करेगा। प्रियदर्शन ने कहा कि सुमन केशरी की कविताओं में ‘भरतवंश’ के इतिहास का उल्लेख नहीं है, बल्कि ‘सत्यवती-द्वैपायन वंश’ का इतिहास है। इस इतिहास ने महाभारत के सभी पुरुष पात्रों को एक गृहयुद्ध के विभीषिका द्वारा बदल डाला है।

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World Book Fair 2024.

सुमन केशरी ने अपनी कविता-संग्रह की बात करते हुए यह व्यक्त किया कि “मेरा ध्यान बचपन से ही महाभारत पर था, और आज भी मैं महाभारत के पात्रों के विषय में ही बात कर रही हूँ।” प्रियदर्शन ने इसके बाद सुमन केशरी से महाभारत और आधुनिक समय के संबंध में प्रश्नोत्तर किया। महाभारत की उन्नीस महिला पात्रों पर केंद्रित यह कविता-संग्रह वर्तमान समय की महिलाओं पर अत्यंत विचारशील दृष्टि प्रकट करता है।

‘वाणी साहित्य-घर उत्सव’ में दिव्या माथुर की पुस्तकों ‘इक सफ़र साथ-साथ’, ‘शामभर बातें’, ‘तिलिस्म’ पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई। इस चर्चा में प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव, प्रो. सत्यकेतु सांकृत, अनिल जोशी, प्रत्यक्षा आदि वक्ता उपस्थित थे।

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World Book Fair 2024.

कार्यक्रम के माध्यम से डॉ. नितिन मिश्रा ने बताया कि ‘तिलिस्म’ उपन्यास में गहन विचारशीलता के साथ ही मनोविज्ञान को भी प्रकट किया गया है। सत्यकेतु सांकृत ने उजागर किया कि प्रवासी लेखन में जिस कमी की अनुपस्थिति महसूस होती है, उसको दिव्या जी ने पूरा करने का प्रयास किया है। प्रत्यक्षा ने कहा कि ‘तिलिस्म’ ऐसी किताब है जो शायद छः सौ पन्नों को पढ़ने के लिए मजबूर करती है। प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने इस उपन्यास को विशेष बताया, उनका मानना है कि यह उपन्यास विविध विडम्बनाओं का एक संयोजन है जो इसे अनूठा बनाता है। अनिल जोशी ने बताया कि यदि कोई व्यंग्य उपन्यास में धर्म के विरोधों की खोज करना चाहता है, तो उन्हें ‘तिलिस्म’ में जाकर देखना चाहिए।

समापन में, वरिष्ठ कथाकार दिव्या माथुर ने सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया और ‘तिलिस्म’ को लेकर कहा कि इस उपन्यास को पाने में मुझे बहुत समय लगा। मैंने बचपन से लेकर अब तक जो अनुभव किए हैं, उनसे ही यह उपन्यास उत्पन्न हुआ है, मैंने इसमें कुछ नया नहीं जोड़ा है।

चर्चा के दौरान साहित्यकार, लेखक और साहित्यप्रेमी भारी संख्या में मौजूद थे।